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लड़कियाँ

laDkiyan

विश्वनाथ प्रसाद तिवारी

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और अधिकविश्वनाथ प्रसाद तिवारी

    यूकेलिप्टस की तरह बढ़ रही हैं

    पुरवा के झकोरों-सी लहरा रही हैं लड़कियाँ

    उनकी आँखें पत्तियों की तरह हैं

    उनके होंठ समुद्री तट की तरह

    अग्नि शिखा-सी दमक रही हैं

    लहरों-सी उफन रही हैं लड़कियाँ

    उनके लाल-लाल तलुवों के स्पर्श से

    खिलते हैं अशोक

    समुद्र के फेन से

    जन्मी हैं लड़कियाँ

    झकोरों में टूट-टूट जाना है उन्हें

    पत्तियों की तरह उड़ जाना है

    पतझर में बिखर जाना है

    बीज की तरह

    कहीं से तोड़ लो

    कहीं भी डाल दो उन्हें

    फिर उगना है अंकुरों में

    लताओं में फैल जाना है

    शरीर नहीं हैं वे

    इच्छाँए हैं

    यज्ञ की धधकती ज्वाला से निकलती हैं

    समा जाती हैं अग्नि-परीक्षा की धरती में

    इस तरह होती है धर्म की स्थापना

    इस तरह होता है दुष्टों का संहार

    धर्मराज करते हैं महाप्रस्थान

    लज्जा, अपमान और लांछन से फटती है धरती

    इस तरह बीतते हैं

    त्रेता और द्वापर

    इसी तरह शुरू होता है कलियुग।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आखर अनंत (पृष्ठ 34)
    • रचनाकार : विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 1991

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