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क्या सिद्ध कर पाएँगे

kya siddh kar payenge

ममता जयंत

अन्य

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ममता जयंत

क्या सिद्ध कर पाएँगे

ममता जयंत

और अधिकममता जयंत

    ठहरो!

    कहती है प्रकृति 

    दौड़ो नहीं, बताता है जीवन 

    पर हम सच से आँख कब मिलाते हैं 

    संकट ने जब रख दिया समेटकर हमें 

    कि होकर रह गए घरों में क़ैद 

    तब नए सिरे से मुस्कुरा रही है धरती 

    आज दुनिया की बदहाली का असर

    दिख रहा है आसमाँ की ख़ुशहाली पर

    दिया है सृष्टि ने बीमारी की ज़हालत से 

    अलग भी बहुत कुछ 

    बदला है कुदरती मिज़ाज

    दिखाई हैं एक ही दौर ने दो तस्वीरें

    बुझे हैं जहाँ असंख्य चिराग

    वहीं सँवारा है प्रकृति ने ख़ुद को

    महसूसा है पहली बार पशु-परिंदों ने

    कि यह संसार आदमी से इतर उनका भी है

    सालों पहले खोया पक्षियों का कलरव

    लौट आया है अनायास 

    महानगर के बच्चों को भी आने लगा है यक़ीन 

    कि तारे दो-चार नहीं इससे ज़्यादा हैं आकाश में

    वे जो दौड़ते थे राजधानी से भी तेज़

    उन्हें भी गया है ठहर कर चलना

    क़ुदरत की फ़ितरत को समझना

    हमारी तहज़ीब का हिस्सा है 

    और उसे सँवारना हमारी सलीकेमंदी

    यक़ीनन वक़्त ने पेश की है एक नई मिसाल 

    दी है अनोखी जीवन शैली और प्रथाएँ

    कल जब लौटेंगे

    अपनी पुरानी दुनिया में 

    या कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में

    कहीं शामिल तो हो जाएँगे फिर से

    वादों और दावों की दौड़ में लड़ेंगे बेहतरी की चाह में

    क्या सीख पाएँगे हम इंसानी तौर-तरीक़े

    क्या बनाए रखेंगे प्रकृति की पावनता को

    क्या बचा पाएँगे उसकी अस्मिता का गौरव

    क्या सिद्ध कर पाएँगे अपने जीवन की सार्थकता

    संकट के इस दौर में?

    स्रोत :
    • रचनाकार : ममता जयंत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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