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कोई पड़ाव नहीं

koi paDav nahin

नीरज नीर

अन्य

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नीरज नीर

कोई पड़ाव नहीं

नीरज नीर

बादल का एक टुकड़ा

ठंडी हवाओं की पीठ पर बैठ

जा रहा है

शहर से

जंगल की ओर…

सुबह-सुबह जंगल से निकली सवारियाँ

भागी जा रही हैं शहर की तरफ़,

बादल की यात्रा से अनजान

सवारियाँ, भूख की अपनी अलग यात्रा करती हैं।

जंगल से शहर की अपनी यात्रा से पूर्व,

उन्होंने अपनी आत्मा को रख छोड़ा है

अंगारे पलाश की जड़ों के पास,

पीपल के पीत पर्णों से ढाँपकर,

जहाँ बादल भिगो देता है

उनकी आत्मा को

रखता है नम...

और शहर में बिना आत्माओं के घूमते शरीर

ईंट, सीमेंट, बालू के साथ

जलाते-खपाते हैं अपनी देह

बहुमंजिली इमारतों की नींव में।

ठेकेदार, मुंशी, मैनेजर लपलपाते हैं जीभ

जैसे जंगल में बाघ अपने खुरदरे जीभ से

साफ़ करता है अपने शिकार की चमड़ी।

जंगल और शहर के अधबीच रास्ते में

कोई पड़ाव नहीं है।

स्रोत :
  • रचनाकार : नीरज नीर
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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