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कितनी देर और

kitni der aur

गुरनाम गिल

अन्य

अन्य

गुरनाम गिल

कितनी देर और

गुरनाम गिल

और अधिकगुरनाम गिल

    हर बार तो

    यों नहीं होना चाहिए

    कि हम देखते रहें

    और वे

    जैसा चाहें सोचें, करते रहें!

    बुरा नहीं सपना सँजोना

    लेकिन ज़रूरी है साकार करने का यत्न भी

    सपनों संग मान लिया

    कुछ समय तो ठीक

    पूरी उम्र नहीं बहलाई जा सकती

    समय पर यदि पक्षी

    जाग सकते हैं

    तो मनुष्य क्यों नहीं?

    अफ़ीम का नशा

    नींद से ख़ारिज करो

    और जीवन मंच पर नाटक देखो

    सोचते हुए सजग होकर

    लेकिन फिर

    यों हो

    अपने सौंदर्यबोध का भी

    सम्मान ज़रूरी है

    भावनाएँ

    संतान का ही दूसरा नाम है

    जो बिक्री के लिए नहीं

    पालन-पोषण के लिए हैं

    मन के सपनों से कहो

    पाँव को चलने की शक्ति दें

    और उड़ने के लिए पंख

    इस नाटक से

    उकता गया है मन

    यह पेट की भूख पूरी करता है

    और ही मन की

    कब तक यह और

    चलेगा

    और हम

    बोलते हुए

    ख़ामोश बैठे रहेंगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 330)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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