आह हाँ, मुझे याद है
आह वही तुम्हारी बंद आँखें
मानो भीतर भरपूर हों वे गहरे प्रकाश से,
तुम्हारा पूर्ण शरीर जैसे हो खुली हथेली,
चंद्रमा के शुभ्र आकार की तरह,
और यही है, परमानंद,
जब हमें नष्ट करती है बिजली की विभास
जब एक ख़ंजर घायल कर देता है हमारी जड़ें
और आलोक गुज़रता है हमारे बालों से
और जब
हम पुनः
लौट रहे हैं जीवन की ओर
मानो उजागर हुए हों सागर से,
मानो ध्वस्त जहाज़ से
लौट रहे हों ज़ख़्मी हो कर
लाल पत्थरों व पतवारों के बीच से।
लेकिन
और भी स्मृतियाँ हैं
केवल आग के फूल ही नहीं,
बल्कि छोटी कलियाँ भी
जो सहसा प्रकट हो जाती हैं
जब मैं यात्रा करता हूँ गाड़ी में
या घूमता हूँ सड़कों पर।
मैं देखता हूँ तुम्हें रुमाल धोते हुए
खिड़की पर सुखाते हुए मेरे फटे मोज़े,
तुम्हारा वह रूप जिस में समाहित है
संपूर्ण आनंद जैसे बिजली
अचानक गिरती है पर तुम्हें नष्ट नहीं करती,
पुनः
स्त्री
साधारण-सी
पुनः मनुज
बेचारा मनुज
गर्वीला, ग़रीब
निश्चित तुम्हें होना पड़ेगा जिससे
न बन पाओ क्षणभंगुर गुलाब
जिसे नष्ट कर दे प्रेम की राख
बल्कि पूरा जीवन,
संपूर्ण जीवन साबुन और सुई के संग
वह सुगंध जिससे मैं प्रेम करता हूँ
उस रसोई की जो न होगी शायद कभी हमारे पास
और तुम्हारे हाथ भुने हुए आलुओं में
और तुम्हारा गुनगुनाना शरद ऋतु में
जब तक पकता है माँस
मेरे लिए शायद यही होगा अंतहीन आनंद
इस धरती पर।
आह मेरा जीवन
सिर्फ़ आग ही नहीं जलती हमारे बीच
बल्कि पूरा जीवन
साधारण कहानी
साधारण प्रेम
एक पुरुष और एक स्त्री का
औरों की तरह।
- पुस्तक : प्यास से मरती एक नदी (पृष्ठ 297)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक विभा मौर्य, मीना ठाकुर
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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