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कर्म का वेग

karm ka veg

उद्भव सिंह शांडिल्य

अन्य

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और अधिकउद्भव सिंह शांडिल्य

    निश्चित है जीवन के, इस रंगमंच से सबका जाना

    हो अयोनिज-आविर्भूत, या बुना हो योग का बाना।

    बस कर्म का उत्तुंग भाव, जब संसार में गहराता है

    तब व्यक्ति जनमानस में अमरकथा लिख जाता है।

    मृत्यु तो शाश्वत है, देखो काशीवास सदैव अटल है

    जन्म-मरण अक्षय है,सत्य तो बस कर्म के फल हैं।

    अनंत आकाशगंगा ऊर्जा को ले, बस तू चलते चल

    फिर तू पदचिन्हों से लिखेगा अपना स्वर्णिम कल।

    मरण को देखो! इसका भी पृथक गीत है, संगीत है

    आख़िर यही जीवन के चक्र का मधुर नवनीत है।

    कौन हुआ अजेय मृत्यु पर, जीता इसको किसने है?

    क्षण में भ्रम टूटा उनका सर्वोपरि समझा जिसने है।

    चिरकाल से कर्म-मृत्यु में,रहा प्रगाढ़ संबंध भाव है

    इन्हीं की धुरी के परितः जीवन का अनंत बहाव है।

    कर्म अच्छे हैं तो फिर धर्मराज शीघ्र बुला ही लेते हैं

    बुरे कर्म यदि हैं फिर धरती लोक पर ही दंड देते हैं।

    देखो गिरिमंडलगामिनी से भी तीव्र कर्म का वेग है

    देखो! कालिंदी से भी अगम कर्म धारा का संवेग है

    बस नित-नितांत तूझे करना, अपना कर्म ही कर्म है

    फिर जीवन चर्मोत्कर्ष पर पहुँचाना ईश्वर का धर्म है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : उद्भव सिंह शांडिल्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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