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कल बड़े का पेपर है

kal baDe ka paper hai

विनय विश्वास

अन्य

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विनय विश्वास

कल बड़े का पेपर है

विनय विश्वास

और अधिकविनय विश्वास

    ये जो चार बच्चों की माँ

    काम में जुती है सिर झुकाए

    चुपचाप

    कोई सोच नहीं सकता

    कैसे बोला करती है चिकर-चिकर

    कल बड़े का पेपर है

    आज फिर पीके आया है इसका बाप

    बीड़ी के धुएँ और गालियों से

    बदबू में रह गई कमी

    पूरी कर रहा है

    ऐसा नहीं कि उसके जी में बदबू कम हो

    और वो जवाब दे सकती हो पूरा-पूरा

    मुँहतोड़

    पर इस वक़्त अपनी आवाज़ घोंटे

    हीक दबाए

    दर्द को सिर में रोके

    मरने की तलब पे क़ाबू रक्खे

    चुपचाप काम में लगी है

    बेटे में ढूँढ़ रही है

    अपने आसमान के लिए जगह

    कल बड़े का पेपर है

    और उसे उसके चारों तरफ़ रहना ही है

    एक अदृश्य गर्भ की तरह।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनय विश्वास
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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