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स्त्री : ज्योतिर्मय अँधेरा

istri ha jyotirmay andhera

वंशी माहेश्वरी

अन्य

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वंशी माहेश्वरी

स्त्री : ज्योतिर्मय अँधेरा

वंशी माहेश्वरी

वह स्त्री

अपने संघर्षों में बचाए रखती है

मनुष्यता का मर्म

वह अपने यथार्थ के इतिहास में खोकर

फिर उसी में

खो जाने के लिए होती है अभिशप्त

वह अपने से दूर होते समय में

उम्मीद की यातना में

कामना की थकान उतारती

अपने ही भीतर तहस-नहस होती है।

वह स्त्री

कौतूहल के रहस्य बुनती-उधेड़ती

आकाश से

टूटते-गिरते तारों की

अंतिम चमक लिए

काँपती, कड़कती, टूटती सौदामिनी है।

वह स्त्री

चुनौती की देह में छिपकर

प्रतिकूल में अनुकूल तलाशती

सचाई की दबी ज़ुबान में

विरोध जताती

पुश्तैनी भटकाव में

शब्दों की बुझती-सुलगती-थरथराती लौ का

ज्योतिर्मय अँधेरा है।

वह स्त्री

जीवन की मृत्यु में फँसी

जलती रेत पर छटपटाती मछली की निरीह उछाल है

जिसे फिर पानी की गोद में जाना है।

स्रोत :
  • रचनाकार : वंशी माहेश्वरी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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