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हासिल

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प्रभात प्रणीत

सड़क इंतज़ार क्यों नहीं करती

छूटते लोगों का

जिन्हें दूर जाना था

बहती धारा से ज़िरह कर

बिखरते, मिटते रेशों को बाँधकर,

सड़क को इतनी जल्दी क्यों है,

जिनके होने का असर कि

सब वहीं रहते हैं

किनारे के पेड़

बिजली के पोल

तार, बल्ब

वे तो नहीं जाते,

मिट्टी भी तो वहीं रहती है

कुछ भी तो नहीं बदलता

सड़क क्यों बदल जाती है,

वह आदमी जो ठहरा था

वजह, अजनबीयत से

जद्दोजहद करते हुए

उसके वफ़ा का एहतराम क्यों नहीं करती

हर ख़ामोश पानी ज़लज़ले का इंतज़ार तो नहीं होता,

वह आदमी जो राख़ अपनी हथेलियों में सहेज रहा था

तक़दीर से, हक़ीक़त से

संवाद करते हुए

सड़क उस पर एतबार क्यों नहीं करती।

अधूरे अफ़सानों की रूह भी पुरसुकूँ हो सकती है,

वह नहीं समझेगी कभी कि

ये लोग जो होते हैं

फिर नहीं होते

कभी नहीं दिखते

उनके निशान ही

इस जहाँ का हासिल है।

स्रोत :
  • पुस्तक : प्रश्नकाल (पृष्ठ 61)
  • रचनाकार : प्रभात प्रणीत
  • प्रकाशन : अनुज्ञा बुक्स
  • संस्करण : 2021

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