प्रेम का सूरज अस्त होने के लिए ही उगता है

prem ka suraj ast hone ke liye hi ugta hai

चंडीदत्त शुक्ल

चंडीदत्त शुक्ल

प्रेम का सूरज अस्त होने के लिए ही उगता है

चंडीदत्त शुक्ल

सबसे बुरा है

उस हँसी का

मर जाना

जो जाग गई थी

तुम्हारी एक मुस्कान से।

जमा हुआ दुख पिघला

आँख से आँसू बनकर

तुमने समेट ली थी

पीड़ा की बूँद

अँगुली की पोर पर।

वह सब

मन का

तरल गरल

व्यर्थ है

अब—

जैसे लैबोरेट्री की किसी शीशी में रखा हो

थोड़ा-सा निस्तेज वीर्य

ठंडा गाढ़ा काला ख़ून

या देह का कोई और

निष्कार्य अवयव।

खिड़कियों के बाहर

कुछ दरके हुए यक़ीन लटके हैं

चमगादड़ों की तरह बेआवाज़

शोर करते हैं

झूठे वादे।

कविताएँ सिर्फ़ गूँज पैदा करती हैं

नहीं बदलतीं क़िस्मत

जैसे कि प्रेम का लंगड़ा होना

उससे पहले से तय होता है,

जब पहली बार वह भरता है

दो डग हँसी की ओर।

चलती रहती है इश्क की साँस

तब मन के उदर में पलता है कविता का भ्रूण

और खा जाता है एक दिन

वही कोमल एहसास

इच्छा का राक्षस।

ढल जाता है साथ देखा गया ठंडा चाँद

गमलों के इर्द-गिर्द उगती रचनाएँ

कुम्हलाई पत्तियों की राख में हैं पैवस्त

एक उदास आदमी चीख़ता हुआ कोसता है ख़ुद को

कहते हुए—क्यों नहीं है मेरे प्रेम में ताक़त?

कैसे घुल-सी गई एक बार फिर

‘सुनो, मेरी आवाज़ सुनो’ की पुकार!

कौन बताए—

प्रेम का सूरज अस्त होने के लिए ही उगता है

कभी नहीं रुकता कोई

सिर्फ़ प्रेम के लिए,

प्रेम के सहारे।

प्रेम की कहानियाँ

इच्छाओं के लोक में

बेसुरी फुसफुसाहट से ज़्यादा

औक़ात नहीं रखतीं।

विरह मिलन से बड़ा सत्य है

और बेहद खरी गारंटी भी

जिसके साथ धोखे की रस्सी से बुने कार्ड पर लिखा है—

टूटेगा मन जो जोड़ने की कोशिश की।

बहुत पहले

नाज़ुक हाथों को थामकर

लिखी थी एक गुननुगाहट

पाखंड के

साइक्लोन ने

ढहा दिया रेत का महल।

समंदर किनारे प्रेम की क़ब्र बनती है

ताजमहल हमेशा नवाबों के हिस्से आते हैं।

आज राजा अँग्रेज़ी बोलते हैं

चमकते अपार्टमेंट्स में होता है उनका ठिकाना

वहीं ऊँची बिल्डिंगों के बाहर

कूड़ेदान के पास पॉलीथीन में लिपटे रहते हैं

कुछ सच्चे चुंबन, चंद गाढ़े आलिंगन

और हज़ारों काल्पनिक वादे!

निर्लज्ज हँसी और बेबस आँसुओं

अपने लिए गढ़े नए नियमों,

दुत्कारों और आरोपों,

गाढ़े धूसर रंग की शिकायतों

और इन सबके साथ हुए

असीम पछतावे के साथ

सब कुछ भले लौट आए

पर नहीं वापस आता

राह भटका हुआ विश्वास।

छलिया आकाश ने निगल लिया है

एक गहरा साथ!

लुप्त हुई नेह की एक और आकाशगंगा

प्रेम से फिर बड़ा साबित हुआ,

उन्माद का ब्लैकहोल!

प्रेम की अकालमृत्यु पर

आओ,

खिलखिलाकर हँसें।

हमारे काल का सबसे शर्मनाक सत्य है—

मन की अटूट प्रतीक्षा से

बार-बार बलात्कार।

कहने को प्रतीक्षा भी स्त्रीलिंग है,

लेकिन उससे हुए दुष्कर्म की सुनवाई

महिला आयोग नहीं करता।

स्रोत :
  • रचनाकार : चंडीदत्त शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY