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गवाही देने आएगा डूबा हुआ सूरज

gawahi dene ayega Duba hua suraj

लक्ष्मण गुप्त

अन्य

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लक्ष्मण गुप्त

गवाही देने आएगा डूबा हुआ सूरज

लक्ष्मण गुप्त

और अधिकलक्ष्मण गुप्त

    जो कुछ भी हो रहा है

    वह बिला जाएगा

    हमारी आँखों से

    यहाँ तक कि हमारे कैमरों से भी

    बहुत ख़ामोश हो जाएँगी

    मासूमों की चींख़ें

    हृदय की तलहटी में

    हम हर साँस के साथ अटा लेंगे

    दिल में कुछ और ही

    छोड़ते हुए हर ज़रूरी साँस

    रात की बेचैनी को महसूस सकने के वास्ते

    नहीं छोड़ेंगे कमरों में एक भी खुली खिड़की

    और रौशनदान तो बंद कर दिए थे हमने

    पिछली ही सदी में अपने घरों के

    हम ख़र्राटों भरी नींद से जागेंगे

    नहीं, नहीं, उठेंगे

    चेतना का गला रेतते हुए

    जी-हुज़ूरी में निकल जाएँगे

    लौटते हुए अपनी देह पर

    लादे हुए अपनी ही लाश

    जीवित होने का झूठा प्रमाणपत्र बाटेंगे

    हम से मिलने वाले भी

    हम से बतियाने वाले भी

    बहुत कुछ ऐसा ही कर रहे होंगे

    हम एक-दूसरे की विवशता को समझेंगे

    दबी हुई हँसी से करेंगे स्वागत

    ताकि बरक़रार रहे अपनापा

    हम निर्मम होते हुए भी

    अति सहृदय होने का स्वाँग रचेंगे

    शायद, स्वाँग नहीं; जीवन कहूँ

    जीने को अभिशप्त होंगे

    हर दिन घट रही घटनाओं का

    हम नहीं रख पाएँगे कोई हिसाब

    त्रासदियों का तो बिल्कुल भी नहीं

    भले ही वे हम पर ही क्यों घटी हों

    दुनिया के इस निर्मम सत्य का

    किससे माँगेंगे सबूत

    कोई नहीं देगा

    सभी घरों में सुरक्षित होंगे

    जब ईमान की अदालत में शुरू होगी कार्यवाही

    कोई नहीं आएगा

    सभी देख रहे होंगे सपने

    फिर भी तुम निराश होना

    मेरे बच्चो,

    कठघरे में गवाही देने

    आएगा डूबा हुआ सूरज

    उसी रंग में

    जिस रंग में डूबा था

    मासूमों के ख़ून के छींटों से

    लहुलूहान होकर!

    स्रोत :
    • रचनाकार : लक्ष्मण गुप्त
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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