Font by Mehr Nastaliq Web

बिना कमरे का घर

bina kamre ka ghar

अनुवाद : इबोहल सिंह काड़्जम

जी. रंजीत शर्मा

अन्य

अन्य

जी. रंजीत शर्मा

बिना कमरे का घर

जी. रंजीत शर्मा

वह दरवाज़ा किसने खोला—

इस छोटे-से घर का

इस छोटे-से घर का वह दरवाज़ा

लात मार के तोड़कर किसने खोला

ठीक से बंद किया गया वह दरवाज़ा

इस छोटे-से घर का?

इस घर के सभी आदमी लेटने से उठकर बैठ गए

बैठने से खड़े हो गए

खड़े होने से तो—

मरने वाले की तरह ज़रूर उड़ जाएँगे।

इस घर के सभी लोग गूँगे हो गए हैं

जीभ नहीं है

अमाशय नहीं है

अधिकार नहीं है।

इस घर के घड़े से चावल निकालकर खा गए

सारे वस्त्र उन्होंने पहने

इस घर की सारी स्त्रियाँ निर्वस्त्र हो गईं

सारे पुरुष निर्वस्त्र हो गए।

इस घर के सभी लोगों की साँस बंद हो गई

इस घर के सभी लोग ढीले-ढाले हो गए

किंतु—

नृत्य हो रहा है

मुद्राएँ बन रही हैं

तर्क-वितर्क हो रहा है

चेहरे लाल हो रहे हैं

अब इस घर के सभी लोग जी पाएँगे?

वह दरवाज़ा ज़रा बंद करो

इस छोटे-से घर का

इस छोटे-से घर का

वह दरवाज़ा ज़रा बंद करो।

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक मणिपुरी कविताएँ (पृष्ठ 73)
  • संपादक : देवराज
  • रचनाकार : जी. रंजीत शर्मा
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 1989

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY