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दूर कहीं शोर है

door kahin shor hai

सत्यपाल सहगल

सत्यपाल सहगल

दूर कहीं शोर है

सत्यपाल सहगल

दूर कहीं शोर है

पास एक ठहराव है पुल की तरह

जिस पर मैं खड़ा हूँ

नीचे एक नदी है लोरी के गीत की तरह

जाने कब से हूँ पुल पर

शायद बरसात होगी

कहीं दूर पेड़ चिरने की आवाज़ है

कहीं पास कोई सड़क बन रही है

उसके बनने का संगीत है

पुल पर हूँ

आर या पार जाने की जल्दी में नहीं हूँ

नदी में तैरती हैं डालियाँ

झाँकती है घास

झाँकती रोशनी है चोर पैरों से

घरों की छायाएँ

थके मुसाफ़िरों की तरह नदी में बैठी हैं

पुल पर हूँ

जैसे पुल के प्यार में हूँ

नदी में पुल की छाया भी है

नदी ने तमाम छायाओं को माँ की तरह

गोद में समेटा हुआ है

स्रोत :
  • रचनाकार : सत्यपाल सहगल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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