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दुख लिखा जाना चाहिए

dukh likha jana chahiye

पंकज चतुर्वेदी

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पंकज चतुर्वेदी

दुख लिखा जाना चाहिए

पंकज चतुर्वेदी

और अधिकपंकज चतुर्वेदी

    कोरोना जैसी महामारी

    किसी ने देखी नहीं है

    इसके पहले 1918 में

    स्पैनिश फ़्लू आया था

    सिर्फ़ हिंदुस्तान में

    डेढ़ से दो करोड़ लोग मरे थे

    महिषादल में निराला को तार मिला :

    'तुम्हारी स्त्री सख़्त बीमार है

    आख़िरी मुलाक़ात के लिए आओ'

    मगर जब वह ससुराल पहुँचे

    मनोहरा देवी की

    चिता जल चुकी थी

    फिर उनके गाँव गढ़ाकोला में

    बड़े भाई, भाभी, उनकी दुधमुँही बच्ची

    और चाचा गुज़र गए

    निराला लौटकर

    डलमऊ के अवधूतटीले पर

    बैठकर देखा करते :

    'गंगा जैसे लाशों का ही प्रवाह थी'

    घाटों पर इतने शव

    कि उन्हें फूँकने के लिए

    लकड़ी कम पड़ गई थी

    बाईस साल के निराला

    कोई सरपरस्त रह गया

    हमसफ़र

    ऊपर से छह बच्चों की ज़िम्मेदारी

    चार भाई के दो अपने

    चारों ओर अँधेरा था

    दुख लिखा जाना चाहिए

    समय बीतने पर वह

    ढाड़स में बदल जाता है

    एक टिमटिमाती हुई लौ

    जिसमें हम पहचानते हैं

    पूर्वजों ने कितनी यातना सही

    मगर वे हारे नहीं

    जीवन विषण्ण वन था

    फिर भी कविता महाकाव्य थी

    स्रोत :
    • रचनाकार : पंकज चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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