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धरती के फुट भर हिस्से को रँगता वह आदमी

dharti ke phut bhar hisse ko rangata wo adami

सुमन केशरी

अन्य

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सुमन केशरी

धरती के फुट भर हिस्से को रँगता वह आदमी

सुमन केशरी

और अधिकसुमन केशरी

    ज्यों आसमान पर जहाज़ उड़े

    त्यों आया था वह चाक़ू

    और धँस गया ऐन कलेजे में

    जैसे उसे पता हो कि धँसना कहाँ है

    दर्द और डर में से

    कौन जीता उस चीख़ में

    यह तो उस तक को पता चला

    जो गिरा इस तरह

    कि चाक़ू आर-पार हो गया

    कलेजे और पीठ के

    अब चाक़ू का फल क्षितिज की ओर तना था

    क्षितिज लाल हो चला था

    दूर-दूर तक कोई था

    सिवाय घोड़े के टापों-सी

    उलझते दौड़ते दूर होते कदमों के आवाज़

    धरती के फुट भर हिस्से को रँगता वह आदमी

    अब भी डर और दर्द की उलझन में पड़ा था

    कड़ियाँ लपेटता...

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुमन केशरी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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