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दीवार के इस पार, उस पार

diwar ke ispar, uspar

कुमार विकल

अन्य

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कुमार विकल

दीवार के इस पार, उस पार

कुमार विकल

और अधिककुमार विकल

    सुरक्षा की एक छोटी-सी चाहत में

    नींद और जागरण के बीच भटकते हुए

    हर रात मैंने की हैं अनेक यात्राएँ।

    हर यात्रा के अंत में मिलती है मुझे

    धरती से आसमान तक उठी हुई

    एक अभेद्य काली दीवार

    जिससे टकराकर हताश

    मैं लौटा हूँ बार-बार

    किंतु अचानक मिल गया है मुझे एक जादुई मंत्र

    जिससे खुल गया है मेरे लिए

    दीवार के उस पार का तंत्र।

    जबसे पहुँचा हूँ दीवार के इस पार

    मेरे शरीर में रच गया है समझौतों का ज़हर

    मेरी शिराओं में बहने लगा है चापलूसी का रक्त

    मैं महसूस करता हूँ—

    निकट गया है मेरी कुत्ता फ़ज़ीहत का वक़्त।

    मुझे अच्छी लगने लगी हैं

    देशभक्त कवियों की कविताएँ

    गुदाज़ जिस्म, संभ्रांत महिलाएँ

    अफ़सरनुमा लोगों के फूहड़ लतीफ़े

    और ज़िंदगी में तरक़्क़ी करने के तरीक़े।

    मेरे परिचितों की सूची में हो रही है

    तरक़्क़ीपसंद लोगों की भरमार

    जिनकी एक जेब में अमरीका का वीज़ा

    दूसरी में माओ की लाल किताब।

    इस रहस्यमय तंत्र में

    जब मैं मरूँगा एक कुत्ते की मौत

    तो दीवार के इस पार

    कोई नहीं करेगा मेरी लाश को स्वीकार।

    हाँ, दीवार के उस पार

    तराई के जंगलों में

    ठिठुरती रातों में भटकते हुए

    गुरिल्ला नौजवानों का एक दस्ता

    मेरी मौत पर रखेगा एक छोटा-सा प्रस्ताव

    कि आदमी ने जाने हैं अब तक जितने ज़हर

    उनमें सबसे अधिक घातक है

    सुरक्षा की एक छोटी-सी चाहत का ज़हर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : निषेध (पृष्ठ 165)
    • संपादक : जगदीश चतुर्वेदी
    • रचनाकार : कुमार विकल
    • प्रकाशन : ज्ञान भारती प्रकाशन
    • संस्करण : 1972

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