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चीड़ों पर चाँदनी

chiDon par chandni

शचींद्र आर्य

शचींद्र आर्य

चीड़ों पर चाँदनी

शचींद्र आर्य

तेईस साल पहले एक लड़की थी, प्रिया मिश्र।

उसने कभी यह किताब आठ सितंबर के दिन ख़रीदी होगी।

आज उसे कितना याद होगा, पता नहीं।

कभी-कभी सोचने लगता हूँ,

उसे यह किताब कहाँ मिली होगी?

किसने बताया होगा, निर्मल वर्मा को पढ़ना चाहिए?

किसी किताब की तरह नहीं,

आहिस्ते से भाषा में तैरते हुए कहीं दूर निकल जाने के लिए।

जैसे बुढ़ापे में हमारी कमर झुक जाती है,

उसी तरह आज इसका एक-एक पन्ना पीला पड़ चुका है।

निर्मल वर्मा की किताब में इस लड़की का नाम

‘लिदीत्से’ की तरह दिल में रह गया है।

कभी लिखूँगा।

एक लड़की थी प्रिया मिश्र।

वह किताब पढ़ती थी।

मैं बिल्कुल नहीं जानता

इस नाम की लड़की असल में भी कहीं है भी या नहीं।

फिर भी यह ख़याल मेरे मन से कहीं नहीं जाता।

ज़िंदगी में कभी मिले,

तो उनके नाम की यह किताब उन्हें वापस कर दूँगा।

कभी सोचता हूँ,

कितनी उमर रही होगी उनकी?

आज कितने साल की होंगी?

मैं ख़ुद तीस पार चला आया हूँ।

वह भी तब उन्नीस-बीस की रही होंगी।

शादी नहीं हुई होगी।

हो सकता है,

उन्होंने अपने साथी को यह किताब ख़रीद कर दी हो

और वह इसे अपने पास नहीं रख पाया।

पता नहीं क्यों यह कहानी मुझे खींच रही है।

लड़की किताब से नहीं,

उसे पढ़ने वाले से प्यार करती है।

उसे पढ़ने वाला,

उसे क्या, उसकी दी किताब भी नहीं सँभाल पाया।

अक्सर हम लड़के ऐसे ही होते हैं।

बेकार। डरपोक। लापरवाह।

स्रोत :
  • रचनाकार : शचींद्र आर्य
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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