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प्यार नहीं चाहिए

pyaar nahin chahiye

कान्स्तैंतीन बालमोंत

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कान्स्तैंतीन बालमोंत

प्यार नहीं चाहिए

कान्स्तैंतीन बालमोंत

और अधिककान्स्तैंतीन बालमोंत

    काश मेरी पीर की गंभीरता तुम जान पाती,

    प्यार पाकर प्यार से अब अरुचि मुझको हो गई है।

    रात आधी, एक बिस्तर, एक तकिया और हम दो,

    किंतु मेरा हृदय एकाकी—असंग पड़ा हुआ था।

    तुम इसे किस भाँति समझोगी, किया मैंने बहाना—

    विस्मरण की कामना में मधुर निद्रा में पड़ा हूँ?

    जान, लेकिन, मैं चुका था प्यार तो इस प्यार के अंदर नहीं है,

    मुँदी, निद्राहीन मेरी आँख पर यह भेद सारा

    बहुत जल्दी खुल गया था।

    प्यार है अज्ञात भाग्य-मरीचिया जो

    नई, गहरी वेदनाओं के मरुस्थल में भ्रमाती,

    बाध्य करती, संपदा देवी हमारे पास जो

    चुपचाप हम बलिदान कर दें।

    प्यार की मैत्री नहीं थिर,

    वस्तुत: वह दीर्घजीवी शत्रु ही है।

    प्रेयसी, पीड़ा से हृदय मेरा वेधो,

    (कम भोगा, सहा मैंने)

    बात पिछली भूल जाओ, और सीखो फिर तुम

    आँसू बहाना, प्यार करना।

    प्यार जब करता नहीं मैं

    तब किसी का प्यार पाने से कहीं यह अधिक सुखकर है

    कि विस्मृत कर दिया जाए मुझे बिल्कुल, सुनयने।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 116)
    • रचनाकार : कान्स्तैंतीन बालमोंत
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 1964

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