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नीले मकान

nile makan

होर्खे लुइस बोर्खेस

अन्य

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और अधिकहोर्खे लुइस बोर्खेस

    जहाँ सेन जुआन और चाकाबुकों का संगम होता

    मैंने वहाँ नीले मकान देखे हैं

    मकान : जिन पर ख़ानाबदोशी का रंग है

    वे झंडों की तरह लहरा रहे हैं

    पूर्व—जो अपने आधीनों को स्वतंत्र कर देता है—

    की तरह गंभीर हैं

    कुछ पर ऊषा के आकाश का रंग है

    कुछ पर तड़के के आकाश का रंग,

    घर के किसी भी उदास अँधेरे कोने के सामने

    उनका तीव्र भावनात्मक आलोक जगमगा उठता है

    मैं उन लड़कियों के बारे में सोच रहा हूँ जो

    तपते हुए आँगन में से आकाश की ओर देख रही होंगी

    उनकी चंपई बाहें और

    काली झालरें

    शर्बत के गिलासों सी उनकी लाल आँखों में अपनी

    छाया देखने का उल्लास

    मकान के नीले कोने पर

    एक अभिमान भरे दर्द की छाप है

    मैं लोहे का दरवाज़ा खोल कर

    भीतरी सहन को पार कर

    घर के अंदर पहुँचूँगा

    कक्ष में एक लड़की—जिसका हृदय मेरा हृदय है—

    मेरी प्रतीक्षा में होगी

    और हम दोनों को एक प्रगाढ़ आलिंगन घेर लेगा

    हम आग की लपटों की तरह काँप उठेंगे

    और फिर उल्लास की बेताबी

    धीरे-धीरे

    घर की मृदुल शांति में खो जाएगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : देशान्तर (पृष्ठ 70)
    • संपादक : धर्मवीर भारती
    • रचनाकार : होर्खे लुइस बोर्खेस
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
    • संस्करण : 1960

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