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पैर-पैर

pair pair

अनुवाद : रोहित प्रसाद पथिक

सुभाष मुखोपाध्याय

अन्य

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और अधिकसुभाष मुखोपाध्याय

    सब समय

    वह मेरे पैर-पैर में

    सब समय

    वह मेरे पैर-पैर में

    घूमता-फिरता रहता है।

    उसे कहता हूँ,

    तुम्हें लेकर रहने का समय नहीं

    हे विषाद, तुम जाओ

    अभी मेरे पास समय नहीं

    तुम जाओ!

    एक पेड़ के तने पर

    हृदय-पीठ पर एक करके

    यौवन में पैर धर दिया है।

    एक नंगी मृत्यु

    अभी-अभी देखकर आया हूँ।

    धरती पर प्रचंड चीत्कार करके घूम रहा है

    वह दाँत निचोड़ भय

    मैं उसके शरीर के चमड़े को

    खोल लेना चाहता हूँ।

    माँगकर देखो, हे विषाद!

    एक सुख का मुख देखूँगा बोलकर

    हम लोगों के मुख की ओर देख रही है

    बाल सादा करके अहमद की माँ।

    हे विषाद!

    तू मेरे हाथों के सामने से हट जा,

    पानी और कादा से धान रोकना होगा।

    हे विषाद!

    हाथों के सामने से हट जा,

    मातम को दूर करने की ज़रूरत है

    जाता नहीं,

    विषाद! फिर भी नहीं जाता।

    सब समय

    वह मेरे पैरों में

    घूमता-फिरता रहता है।

    मैं क्रोध से अंधा हो जाता हूँ

    अपनी असीम वेदनाओं को उसकी तरफ़

    फेंककर मारता हूँ।

    बोलता हूँ,

    शैतान तुझे नर्क भेजने पर मैं बचूँगा।

    इसके बाद,

    कब काम के बीच डूब गया पता नहीं

    चाहता हूँ

    दूर बैठकर वही मेरा विषाद

    मुझे एक बार में भूलकर

    मेरी अपूर्ण वासनाओं को लेकर खेल रहा है

    हँसते-हँसते मैं उसे अशांत बच्चे की तरह

    गोद में उठा लेता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : सुभाष मुखोपाध्याय
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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