Font by Mehr Nastaliq Web

अपनी-अपनी राह

apni apni rah

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

रमाकांत रथ

अन्य

अन्य

रमाकांत रथ

अपनी-अपनी राह

रमाकांत रथ

और अधिकरमाकांत रथ

    इस चाय के बाद

    जाओगी तुम अपने घर

    सिर पर पल्लू रख

    घसीटते हुए अपना शरीर

    माँ या दादी बनने।

    इस चाय के बाद

    मैं लौट जाऊँगा अपने दफ़्तर

    फ़ाइलों में दूँगा कई निर्देश

    नहीं होगा जिनमें

    किसी बात को बदलने या

    जो कुछ बदल रहा है

    उन्हें रोकने का दम।

    इस जीवन के बाद

    मेरे फेफड़ों के कैंसर से

    मेरी मृत्यु हो जाने के बाद

    उसके कुछ दिन पहले या उपरांत

    आँखें मूँद लेने पर

    अँधेरे का सागर होगा,

    हम उसमें नन्ही-नन्ही मछलियों की तरह

    कहीं रह रहे होंगे,

    समुद्र में जहाँ मैं होऊँगा,

    यदि वहाँ तुम्हारा सौंदर्य पुनः दिखेगा

    तुम्हारे होने की जगह की

    काली-काली दीवारें ढह जाएँगी,

    तारकोल के ज्वार में मेरी याददाश्त

    बहती हुई जाकर रुक जाएगी

    बिछोह के दूरतम सीमांत गाँव में।

    इस चाय के बाद,

    इस जीवन के बाद

    दुनिया की टेढ़ी-मेढ़ी राहों

    और गंदे घरों

    करोड़ों लोगों की आवाजाही

    जीने और मरने के बाद

    क्या सुनाई देता है?

    क्या दिखाई देता है?

    ख़त्म हुए दुखांत नाटक के अंतिम दृश्य में

    नायक-नायिका का संवाद,

    और असंभव शरद ऋतु की भोर में

    आँसुओं से सराबोर

    एक नीली कुमुदिनी तालाब में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तैयार रहो मेरी आत्मा (पृष्ठ 53)
    • रचनाकार : रमाकांत रथ
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए