Font by Mehr Nastaliq Web

अमर खेल

amar khel

अनुवाद : अशोक जेरथ

ज्ञानेश्वर

अन्य

अन्य

ज्ञानेश्वर

अमर खेल

ज्ञानेश्वर

और अधिकज्ञानेश्वर

    जन्म-मरण, सुख-दुःख के पहलू

    सूरज का चढ़ना, डूबना है,

    क्रम एक जिसकी कोख में

    मानवीय एहसास छपा रहता,

    सँभालना, याद रखना वेग भरे

    जीवन से भरे साँसों के लिए

    मौत पर जीवन की जीत

    सुफल, निरंतर यत्न है जैसे

    मृत्यु जीवन बस विष अमृत की

    खेल की तरह खेल निराला

    जिसको कोई अनोखा नायक

    लेकर सभी खिलाड़ियों को

    युगों-युगों से खेल रहा

    और हम तरह-तरह के मोहरे

    नई-नई जगहों को मल कर

    नैन नक़्श और चेहरे बदलकर

    जग मेलों में आते-जाते

    और इस खेल में थक-हारकर

    हम सारे ही विष के भोगी

    दो क्षण ही अमृत रस लेकर

    जीने का विश्वास जमाने

    और जीवन को अमर बनाने

    नए खिलाड़ियों को अमृत देकर

    स्वयं विष पीकर सो जाते

    नई संतति फिर नए जुगाड़

    नई आकांक्षाओं को लेकर उठती

    लहरों, उत्ताल तरंगों और धाराओं में

    कल्लोल करती, आगे बढ़ती

    जीवन नदी की लहर-लहर में

    हास, रौनक और मेले रचाती

    जीवन-जीवन का मेल कराती

    और धरती की गोद में खेल

    कण-कण अपने भाग्य सराहती

    विष-अमृत के इस खेल में

    हम सारे बस मिलकर

    जीवन के इस हवन कुंड में

    अपने प्राणों की आहुति से

    जीवन ज्योति को जलाए रखते

    विकास और उज्ज्वलता के लिए

    शव से शिव बनने के लिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 104)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : ज्ञानेश्वर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY