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पूत न मानै आपन डाँट

poot na manai aapan Dant

घाघ

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पूत न मानै आपन डाँट

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और अधिकघाघ

    पूत मानै आपन डाँट।

    भाई लड़ै चहै नित बाँट॥

    तिरिया कलही करकस होइ।

    नियरा बसल दुहुट सब कोई॥

    मालिक नाहिन करै विचार।

    घाघ कहैं बिपति अपार॥

    यदि पुत्र डांट-डपट नहीं मानता, भाई नित्य झगड़ता रहता है और बँटवारा चाहता है, स्त्री झगड़ालू और कर्कशा है, आस-पड़ोस में सब दुष्ट बसे हुए हैं, मालिक न्याय-अन्याय का विचार नहीं करता; घाघ कहते हैं कि ये अपार विपत्तियाँ हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : घाघ और भड्डरी (पृष्ठ 34)
    • संपादक : रामनरेश त्रिपाठी
    • रचनाकार : घाघ
    • प्रकाशन : हिंदुस्तानी एकेडेमी, यू.पी, इलाहाबाद
    • संस्करण : 1949

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