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रूमी

1207 - 1273

संसारप्रसिद्ध सूफ़ी कवि और रहस्यवादी संत। 'मसनवी-ए-मा’नवी', 'फ़िहि माफ़ीह' और 'दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी' उल्लेखनीय कृतियाँ।

संसारप्रसिद्ध सूफ़ी कवि और रहस्यवादी संत। 'मसनवी-ए-मा’नवी', 'फ़िहि माफ़ीह' और 'दीवान-ए-शम्स तबरेज़ी' उल्लेखनीय कृतियाँ।

रूमी के उद्धरण

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नास्तिकता शुष्क छिलका है जो ऊपर से विलक हो गया तो उसके नीचे धर्म का कोमल और स्वादिष्ट छिलका पाया गया।

मैं कौन हूँ और कौन नहीं हूँ, इसको जानने में मैंने बहुत-सी चीज़ें जान ली हैं। और वह कौन है और कौन नहीं है इसी को जानने में बहुत-सी चीज़ें मैंने खो दी हैं।

तू मिट्टी था पर अब हृदय के रूप में परिणत हो गया है। तू मूर्ख था परंतु अब बुद्धिमान हो गया है। जिसने तुझे ऐसा बना दिया है, वही तुझे उस प्रकार उधर भी ले जाएगा।

अंत में मैंने अपने हृदय के कोने में दृष्टि डाली। देखता क्या हूँ कि वह वहीं पर उपस्थित है। दूसरे स्थानों में व्यर्थ भटकता फिरा।

प्रेमी और प्रेम अमर हैं। प्रेम के अतिरिक्त किसी अन्य वस्तु से प्रेम कर क्योंकि अन्य वस्तुओं का अस्तित्व अस्थायी है।

भेद-बुद्धि पशु की अवस्था का लक्षण है, अभेदबुद्धि मनुष्यता का।

प्रेम के मार्ग में चतुराई बहुत बुरी चीज़ है।

तृषित पुरुष यदि संसार में जल की खोज करते हैं तों जल भी इस संसार में तृषितों की खोज में रहता है।

प्रेम के कारण कड़वी वस्तुएं मोठी हो जाती हैं। प्रेम के स्वभाव के कारण ताँबा सोना बन जाता है।

यदि खोटे सिक्के के सदृश नहीं है तो स्वच्छ हृदय प्राप्त कर। यदि तेरे कान में मोती नहीं है तो उस सिक्के को कान में धारण कर ले।

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मैं प्रेम का प्याला पीकर मस्त हो रहा हूँ। दोनों संसारों को त्याग चुका हूँ। भिक्षा और निर्धनता के अतिरिक्त मेरे पास कोई वस्तु नहीं है।

प्रेम से रोग स्वास्थ्य बन जाता है। प्रेम ही से को क्रोध दया बन जाता है।

मैंने द्वैत के आवरण को अपने अंदर से निकाल दिया है। दोनों संसारों (नश्वर जगत् अविनाशी जगत्) को मैं एक ही जानता हूँ। मैं एक ही को ढूँढ़ता हूँ और उसी को जानता हूँ। वही एक मेरी दृष्टि में है और वही एक मेरे हृदय में है।

वही आदि है और वही अंत है। वही प्रकट है और वही अदृश्य है। जो बाहर है और जो मेरे अंदर है, उसके अतिरिक्त और किसी को मैं नहीं जानता।

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