शिव पर दोहे

शिव का अर्थ है मंगलदाता।

यह भगवान शंकर का एक नाम है जिन्हें शंभू, भोलेनाथ, त्रिलोचन, महादेव, नीलकंठ, पशुपति, आदियोगी, रुद्र आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। इस चयन में शिव की स्तुति और शिव के अवलंब से अभिव्यक्त कविताओं का संकलन किया गया है।

प्रतिपालक सेवक सकल, खलनि दलमलत डाँटि।

शंकर तुम सम साँकरैं, सबल साँकरैं काटि॥

सब सेवकों का पालन करने वाले और दुष्टों का दमन करने वाले—नष्ट-भ्रष्ट कर देने वाले—हे भगवान् शंकर! आपके समान दु:खों या कष्टों की मज़बूत शृंखलाओं—ज़ंजीरों को काटने वाला भला मेरे लिए और दूसरा कौन है!

मतिराम

जानि राम सेवा सरस, समुझि करब अनुमान।

पुरुषा ते सेवक भए, हर ते भे हनुमान॥

श्री राम की सेवा में परम आनंद जानकर पितामह ब्रह्माजी सेवक जांबवान् बन गए और शिव जी हनुमान् हो गए। इस रहस्य को समझो और प्रेम की महिमा का अनुमान लगाओ।

तुलसीदास

संकर प्रिय मम द्रोही, सिव द्रोही मम दास।

ते नर करहिं कलप भरि, घोर नरक महुँ बास॥

(भगवान् श्री रामचंद्र जी कहते हैं कि) जिनको शिव जी प्रिय हैं, किंतु जो मुझसे विरोध रखते हैं; अथवा जो शिवजी से विरोध रखते हैं और मेरे दास बनना चाहते हैं, मनुष्य एक कल्प तक घोर नरक में पड़े रहते हैं (अतएव श्री शंकर जी में और श्री राम जी में कोई ऊँच-नीच का भेद नहीं मानना चाहिए।)।

तुलसीदास

नातो नाते राम कें, राम सनेहँ सनेहु।

तुलसी माँगत जोरि कर, जनम-जनम सिव देहु॥

तुलसीदास हाथ जोड़कर वरदान माँगता है कि हे शिवजी! मुझे जन्म-जन्मान्तरों में यही दीजिए कि मेरा श्री राम के नाते ही किसी से नाता हो और श्री राम से प्रेम के कारण ही प्रेम हो।

तुलसीदास

मो मन मेरी बुद्धि लै, करि हर कौं अनुकूल।

लै त्रिलोक की साहिबी, दै धतूर कौ फूल॥

हे मेरे मन, मेरी बुद्धि को लेकर भगवान् शंकर के अनुकूल बना दे, अर्थात् मुझे भगवान् शंकर का भक्त बना दे, क्योंकि उन पर भक्त केवल धतूरे के पुष्प चढाकर ही तीनों लोकों का आधिपत्य प्राप्त कर लेता है। भाव यह कि भगवान् शंकर आशुतोष हैं, वे तत्काल प्रसन्न हो जाते हैं। अत: उन्हीं की भक्ति करनी चाहिए।

मतिराम

करि सिंगार पिय पै चली, हाथ कुसुम की माल।

हरी छोड़ हर पै गई, कारन कौन जमाल॥

सामान्य अर्थ : नायिका शृंगार करके अपने प्रिय से मिलने चली। उसने हरि पूजन के निमित्त पुष्पों की माला भी साथ में ली। पर किस कारण वह हरि पूजन को जाकर, शिव की पूजा करने चली गई?

गूढ़ार्थ : नायिका की इच्छा हरि पूजन की थी, पर इसी बीच में प्रिय के चले जाने का संदेश मिला तो विरहाग्नि के कारण पुष्पमाल जलकर भस्म हो गई। इसी भस्म को चढ़ाने वह शिव मंदिर की ओर गई।

जमाल

राम नाम शंकर कह्यौ, गौरी कौं उपदेस।

सुंदर ताही राम कौं, सदा जपतु है सेस॥

सुंदरदास

किए करम विपरीत तऊ, तऊ संत सोभंत।

नील कंठ भे खाय विष, शिव छवि लहत अनंत॥

दीनदयाल गिरि

दलौ त्रिशूल धर! त्रिभुवन-प्रलयंकारि।

हर, त्र्यंबक, त्रैलोक्य-पर, त्रिदश-ईश, त्रिपुरारि॥

वियोगी हरि

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere