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हनुमान पर दोहे

जानि राम सेवा सरस, समुझि करब अनुमान।

पुरुषा ते सेवक भए, हर ते भे हनुमान॥

श्री राम की सेवा में परम आनंद जानकर पितामह ब्रह्माजी सेवक जांबवान् बन गए और शिव जी हनुमान् हो गए। इस रहस्य को समझो और प्रेम की महिमा का अनुमान लगाओ।

तुलसीदास

तुलसी रामहु तें अधिक, राम भगत जियें जान।

रिनिया राजा राम में, धनिक भए हनुमान॥

तुलसी कहते हैं कि श्री राम के भक्त को राम जी से भी अधिक समझो। राजराजेश्वर श्री रामचंद्र जी स्वयं ऋणी हो गए और उनके भक्त श्री हनुमान जी उनके साहूकार बन गए (श्री राम-जी ने यहाँ तक कह दिया कि मैं तुम्हारा ऋण कभी चुका ही नहीं सकता)।

तुलसीदास

जेहि सरीर रति राम सों, सोइ आदरहिं सुतान।

रुद्र देह तजि नेह बस, संकर भे हनुमान॥

चतुर लोग उसी शरीर का आदर करते हैं, जिस शरीर से श्री राम में प्रेम होता है। इस प्रेम के कारण ही श्री शंकर जी अपने रुद्र देह को त्यागकर हनुमान बन गए।

तुलसीदास

कियो सुसेवक धरम कपि, प्रभु कृतग्य जियँ जानि।

जोरि हाथ ठाढ़े भए, बरदायक वरदानि॥

श्री हनुमान जी ने एक अच्छे सेवक का धर्म ही निभाया। परंतु यह जानकर वर देने वाले देवताओं के भी वरदाता महेश्वर श्री भगवान् हृदय से ऐसे कृतज्ञ हुए कि हाथ जोड़कर हनुमान जी के सामने खड़े हो गए (कहने लगे कि हे हनुमान्! मैं तुम्हारे बदले में उपकार तो क्या करूँ, तुम्हारे सामने नज़र उठाकर देख भी नहीं सकता)।

तुलसीदास

तुलसी राम सुदीठि तें, निबल होत बलवान।

बैर बालि सुग्रीव के, कहा कियो हनुमान॥

तुलसी कहते हैं कि श्री राम की शुभ दृष्टि से निर्बल भी बलवान् हो जाते हैं। सुग्रीव और बालि के वैर में हनुमान जी ने भला क्या किया? (परंतु वही श्री राम जी की कृपा से महान् वीर हो गए)।

तुलसीदास

सहस फनी-फुंकार औ, काली-असि-झंकार।

बन्दों हनु-हुंकार त्यौं, राघव-धनु-टंकार॥

वियोगी हरि

कनक-कोट-कंगूर जो, किये धौरहर धूम।

सो भारत-आरति हरौ, मारुती-लामी-लूम॥

वियोगी हरि

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere