धर्मनिरपेक्षता पर दोहे

भारतीय संविधान में विशेष

संशोधन के साथ धर्मनिपेक्षता शब्द को शामिल किए जाने और हाल में सेकुलर होने जैसे प्रगतिशील मूल्य को ‘सिकुलर’ कह प्रताड़ित किए जाने के संदर्भ में कविता में इस शब्द की उपयोगिता सुदृढ़ होती जा रही है। यहाँ इस शब्द के आशय और आवश्यकता पर संवाद जगाती कविताओं का संकलन किया गया है।

मुसलमान सों दोस्ती, हिंदुअन सों कर प्रीत।

रैदास जोति सभ राम की, सभ हैं अपने मीत॥

हमें मुसलमान और हिंदुओं दोनों से समान रूप से दोस्ती और प्रेम करना चाहिए। दोनों के भीतर एक ही ईश्वर की ज्योति प्रकाशित हो रही है। सभी हमारे−अपने मित्र हैं।

रैदास

मंदिर मसजिद दोउ एक हैं इन मंह अंतर नाहि।

रैदास राम रहमान का, झगड़उ कोउ नाहि॥

मंदिर और मस्जिद दोनों एक हैं। इनमें कोई ख़ास फ़र्क नहीं है। रैदास कहते हैं कि राम−रहमान का झगड़ा व्यर्थ है। दोनों धर्म−स्थलों में एक ही ईश्वर निवास करता है।

रैदास

हिंदू तो हरिहर कहे, मुस्सलमान खुदाय।

साँचा सद्गुरु जे मिले, दुविधा रहे ना काय॥

संत बाबालाल

हिंदू में क्या और है, मुसलमान में और।

साहिब सब का एक है, ब्याप रहा सब ठौर॥

वह ईश्वर हिंदुओं का कोई दूसरा और मुसलमानों का क्या कोई और है? वह सर्वव्यापक प्रभु तो हिंदू और मुसलमान दोनों का एक ही है।

रसनिधि

जब सभ करि दोए हाथ पग, दोए नैन दोए कान।

रैदास प्रथक कैसे भये, हिन्दू मुसलमान॥

रैदास कहते हैं कि जब सभी मनुष्यों के एक समान दो−दो हाथ−पैर, नेत्र और कान हैं तो हिंदू और मुसलमान कैसे एक−दूसरे से भिन्न हुए?

रैदास

सर्गुण निर्गुण है रहे, जैसा तैसा लीन।

हरि सुमिरण ल्यौ लाइये, का जाणों का कीन्ह॥

दादू दयाल

एकै अल्लह राम है, समरथ साईँ सोइ।

मैदे के पकवान सब, खाताँ होइ से होइ॥

दादू दयाल

ईसाई, हिंदू, जवन, ईसा, राम, रहीम।

बैबिल, बेद, कुरान में, जगमग एक असीम॥

दुलारेलाल भार्गव

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere