मस्जिद पर दोहे
नमाज़ पढ़ने की जगह या
मसीत को मस्जिद कहा जाता है। मंदिरों की तरह ही मस्जिदें भी भारतीय सांस्कृतिक जीवन की अभिन्न अंग हैं।
मस्जिद सों कुछ घिन नहीं, मंदिर सों नहीं पिआर।
दोए मंह अल्लाह राम नहीं, कहै रैदास चमार॥
न तो मुझे मस्जिद से घृणा है और न ही मंदिर से प्रेम है। रैदास कहते हैं कि वास्तविकता यह है कि न तो मस्जिद में अल्लाह ही निवास करता है और नही मंदिर में राम का वास है।
हिंदू पूजइ देहरा मुसलमान मसीति।
रैदास पूजइ उस राम कूं, जिह निरंतर प्रीति॥
हिंदू मंदिरों में पूजा करने के लिए जाते हैं और मुसलमान ख़ुदा की इबादत करने के लिए मस्जिदों में जाते हैं। दोनों ही अज्ञानी हैं। दोनों को ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम नहीं है। रैदास कहते हैं कि मैं जिस राम की आराधना करता हूँ, उसके प्रति मेरी सच्ची प्रीति है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere