पं. रामचंद्र शुक्ल जो निर्गुण मत को कोसते हैं, वह यों ही नहीं, इसके पीछे उनकी सारी पुराण-मतवादी चेतना बोलती है।
निर्गुण मतवाद के जनोन्मुख रूप और उसकी क्रांतिकारी जातिवाद-विरोधी भूमिका के विरुद्ध, तुलसीदासजी ने पुराण-मतवादी स्वरूप प्रस्तुत किया।
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निर्गुण-मतवादियों का ईश्वर एक था, किंतु अब तुलसीदासजी के मनोजगत में परब्रह्म के निर्गुण-स्वरूप के बावजूद, सगुण ईश्वर ने सारा समाज और उसकी व्यवस्था—जो जातिवाद, वर्णाश्रम धर्म पर आधारित थी—उत्पन्न की।
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निर्गुण मत के विरुद्ध सगुण मत का प्रारंभिक प्रसार और विकास उच्चवंशियों में हुआ।
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उत्तर भारत में निर्गुणवादी भक्ति आंदोलन में शोषित जनता का सबसे बड़ा हाथ था।
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निर्गुण मत के विरुद्ध सगुण मत का संघर्ष, निम्न वर्गों के विरुद्ध—उच्चवंशीय संस्कारशील अभिरुचिवालों का संघर्ष था।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere