चाँद पर दोहे

चाँद मनुष्य का आदिम

सहयात्री है जो रात्रि-स्याह के सुख-दुःख में उसका संगी-साथी हो जाता है। प्रेमिल बिंबों-प्रतीकों के साथ ही किसी कवि की ही कल्पना ने उसे देवत्व तक सौंप दिया है।

तेरी मुख-समता करी, साहस करि निरसंक।

धूरि परी अरबिंद मुख, चंदहि लग्यौ कलंक॥

हे राधिके, कमल और चंद्रमा ने तुम्हारे मुख की समता करने का साहस किया, इसलिए मानो कमल के मुख पर तो पुष्परज के कण रूप में धूल पड़ गई, और चंद्रमा को कलंक लग गया। यद्यपि कमल में पराग और चाँद में कलंक स्वाभाविक है तथापि उसका यहाँ एक दूसरा कारण राधा के मुख की समता बताया गया है।

मतिराम

पत्रा ही तिथि पाइयै, वा घर के चहुँ पास।

नित प्रति पून्यौईं रहै, आनन-ओप-उजास॥

उस नायिका के घर के चारों ओर इतना प्रकाश रहता है कि केवल पंचांग की सहायता से ही तिथि का पता लग सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि नायिका का मुख पूर्णिमा के चंद्रमा के समान सुंदर है। इसलिए नायिका के घर के चारों ओर हमेशा पूर्णिमा ही बनी रहती है, परिणामस्वरूप तिथि की जानकारी ही नहीं हो पाती है। यदि कोई तिथि जानना चाहता है तो उसके लिए उसे पंचांग से ही सहायता लेनी पड़ती है।

बिहारी

लई सुधा सब छीनि विधि, तुव मुख रचिवे काज।

सो अब याही सोच सखि, छीन होत दुजराज॥

बैरीसाल

जमला ऐसी प्रीत कर, जैसी निस अर चंद।

चंदे बिन निस सांवली, निस बिन चंदो मंद॥

प्रीति तो ऐसी करनी चाहिए कि जैसी निशा और चंद्र करते हैं। बिना चंद्र के निशा काली (मलीन) रहती है और बिना निशा के चंद्र भी कांति-हीन रहता है।

जमाल

चली लाज यह काज तजि, मिल्यौ तहाँ नंदनंद।

भई सु आतप चाँदनी, भयौ भानु सो चंद॥

दौलत कवि

सरद चंद की चाँदनी, को कहियै प्रतिकूल।

सरद चंद की चाँदनी, कोक हियै प्रतिकूल॥

शरद ऋतु के चंद्रमा की चाँदनी किसके हृदय के विरुद्ध है—किसके हृदय को अच्छी नहीं लगती, इसका उत्तर यह है कि ‘कोक हिये’ अर्थात् कोक (चकवे) के हृदय को शरद् ऋतु के चाँद की चाँदनी भी अच्छी नहीं लगती।

मतिराम

चंद्र ग्रहण जब होत है, दुनी देत है जमाल।

विरहिण लोंग देत है, कारण कोण जमाल॥

विरहिणी चंद्र की मादक चाँदनी के कारण बहुत दुःखी रहा करती है, वह जब चंद्र को ग्रसा हुआ देखती है तो सोचती है कि मैं मंत्रित लवँग फेंक कर इस चंद्र को सदैव के लिए ग्रसित बना दूँ।

जमाल

बिनहिं मौलिधड़ लिखति लखि, निज आँगन मँह बाल।

लवँग पुष्प चहुँ वोर धरि, कारण कवन जमाल॥

सामान्य अर्थ : जब उस बाला ने अपने आँगन में बिना मस्तक की देह की आकृति को लिखा देखा तब उसने किस कारण से उसके चारों ओर लवंग पुष्प धर दिए?

गूढ़ार्थ : केतु के चित्र के चारों ओर वह लवँग धर कर, तंत्र द्वारा चंद्रमा को केतु द्वारा ग्रसित कराना चाहती है। इस प्रकार वह विरहिणी चंद्रमा को नष्ट करना चाहती है।

जमाल

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere