बहस के स्वरूप को लेकर जितनी बहस संस्कृत के शास्त्रकारों ने की है, उतनी कदाचित् संसार की किसी अन्य भाषा के साहित्य में नहीं मिलेगी।
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कुछ शास्त्रार्थ ऐसे भी हुए जिनमें स्त्री उपस्थिति की आँच अभी भी मंद नहीं हुई है। यह भी बहुधा हुआ है कि स्त्री अकेली होने के बावजूद, अपनी प्रखरता और तेजस्विता में पुरुष समाज को हतप्रभ कर देती है।
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भारतीय समाज मूलतः तर्कप्रवण और वादोन्मुख लोगों का समाज है।
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बहस को आगे बढ़ाने वाली विचारों की सीढ़ियाँ अवयव हैं।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere