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अवधेस के द्वारे सकारे गई

awdhes ke dware sakare gai

तुलसीदास

अन्य

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तुलसीदास

अवधेस के द्वारे सकारे गई

तुलसीदास

और अधिकतुलसीदास

    अवधेस के द्वारे सकारे गई, सुत गोद कै भूपति लै निकसे।

    अवलोकि हौं सोच-विमोचन को ठगि सी रही, जे ठगे धिक से॥

    तुलसी मनरंजन रंजित-अंजन नैन सु-खंजन-जातक से।

    सजनी ससि में समसील उभै नवनील सरोरुह से बिकसे॥

    हे सखी, मैं आज सबेरे राजा दशरथ के द्वार पर गई थी। देखा, राजा अपने पुत्र राम को गोद में लेकर बाहर निकले। शोक को दूर करने वाले राज-पुत्र को देखकर मैं मुग्ध-सी हो गई। जो उन्हें देखकर मुग्ध हो उसे धिक्कार है। तुलसी कहते हैं कि वे सुंदर खंजन पक्षी के बच्चे की सी काजल लगी हुई, मन को आनंदित करने वाली आँखें ऐसी मालूम होती हैं मानो चंद्रमा में एक ही तरह के दो नए नीले कमल खिले हों।

    स्रोत :
    • पुस्तक : कवितावली (पृष्ठ 1)
    • संपादक : देवीनारायण द्विवेदी
    • रचनाकार : तुलसीदास
    • प्रकाशन : एस.बी.सिंह, काशी-पुस्तक-भंंडार, बनारस
    • संस्करण : 1999

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