Font by Mehr Nastaliq Web

चंचल जो सफरी फरकै मनु

chanchal jo saphri pharakai manu

श्रीधर पाठक

अन्य

अन्य

श्रीधर पाठक

चंचल जो सफरी फरकै मनु

श्रीधर पाठक

और अधिकश्रीधर पाठक

    चंचल जो सफरी फरकै मनु मंजुल सी कटि किंकिनि-डोरी।

    सेत विहंगन की सुठि पंगति,राजति सुंदर हार सी गोरी॥

    तौर के देश विशाल नितंब सु मंद प्रवाह भई गति थोरी।

    सोहति या ऋतु में सरिता गज-गामिनि कामिनि सी रसबोरी॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : साहित्य प्रभाकर (पृष्ठ 483)
    • संपादक : महालचंद बयेद
    • रचनाकार : श्रीधर पाठक
    • प्रकाशन : ओसवाल प्रेस कलकत्ता
    • संस्करण : 1937

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए