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प्रकृति पर सवैया

प्रकृति-चित्रण काव्य

की मूल प्रवृत्तियों में से एक रही है। काव्य में आलंबन, उद्दीपन, उपमान, पृष्ठभूमि, प्रतीक, अलंकार, उपदेश, दूती, बिंब-प्रतिबिंब, मानवीकरण, रहस्य, मानवीय भावनाओं का आरोपण आदि कई प्रकार से प्रकृति-वर्णन सजीव होता रहा है। इस चयन में प्रस्तुत है—प्रकृति विषयक कविताओं का एक विशिष्ट संकलन।

मखतूल को झूल परो अगरो

लालबिहारी मिश्र 'द्विजराज'

नाचत केकी अनंद भरे सुर

लालबिहारी मिश्र 'द्विजराज'

aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair

jis ke hote hue hote the zamāne mere