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तुव गुन करूँ बखान

tuv gun karuu.n bakhaan

चरनदास

अन्य

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चरनदास

तुव गुन करूँ बखान

चरनदास

और अधिकचरनदास

    तुव गुन करूँ बखान यह मोरी बुद्धि कहाँ है।

    चतुर मुखी ब्रह्मा गुन गावैं तिनहुँ पायौं जान॥

    गुन गावत संकर जब हारे करने लागे ध्यान।

    गुन अपार कछु पार पायो सनकादिक कथि ज्ञान॥

    गुन गावत नारद मुनि थाके सहस मुखन सूँ सेस।

    लीला को कछु पार ना पायो ना परिमान भेष॥

    सक्ति धनी अनगिनित तुम्हारी बहुतच रूप बहु नावँ।

    जबहिं विचारूँ हिये में हारूँ अचरज हेरि हिरावँ॥

    अति अथाह कछु थान पाऊँ सोच अचक रहिजावँ।

    गुरु सुकदेव थके रनजीता मैं कहु कौन कहाव॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिंदी के जनपद संत (पृष्ठ 163)
    • रचनाकार : चरनदास
    • प्रकाशन : मोेतीलाल बनारसी, दिल्ली
    • संस्करण : 1963

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