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सुरतिया सोग भरी

surtiyaa sog (virah) bharii

संत शिवदयाल सिंह

अन्य

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संत शिवदयाल सिंह

सुरतिया सोग भरी

संत शिवदयाल सिंह

और अधिकसंत शिवदयाल सिंह

    सुरतिया सोग भरी, रहे निस दिन चित्त उदास॥

    प्रीतम प्यारे का ब्योग सतावे, नहिं भावे कुछ भोग बिलास।

    बेकल तड़प उठत मन माहीं, बढ़त अधिक दर्शन की प्यास॥

    गुरु प्यारे मेरे बसें अधर में, मैं तो किया मृतलोक निवास।

    कैसे चढूँ दरस क़स पाऊँ, यहि मेरे मन में सोच और आस॥

    बिन दर्शन मोहि कल पड़त है, रटत रहूँ पिया-पिया हर स्वाँस।

    कैसी करूँ कौन जुगत कमाऊँ, किस बिधि लखूँ प्रीतम परकाश॥

    कासे पूछूँ राह रकाना, प्रीतम का कोइ मिले निज दास।

    मैँ तो अजान भेद नहिं जानूँ, चहत रहूँ पिया चरनन वास॥

    प्रीतम आपहि मरम जनावे, घट में दिखावे शब्द उजास।

    मेहर करै सुत गगन चढ़ावे, पहुँचूँ शब्द गुरु के पास॥

    आगे सत्तलोक जाय परसूँ, सतगुरु चरन निज सुख की रास।

    आगे चल पहुँचूँ धुर धामा, खेलूँ नित पिया राधास्वामी पास॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रेमप्रकाश (पृष्ठ 3)
    • रचनाकार : राधास्वामी सहाय
    • प्रकाशन : राधास्वामी सत्संग इलाहाबाद

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