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हरि-हरि नित समरि उवरिसी

hari hari nit samari uwarisi

धन्ना भगत

अन्य

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धन्ना भगत

हरि-हरि नित समरि उवरिसी

धन्ना भगत

और अधिकधन्ना भगत

    हरि-हरि नित समरि उवरिसी हरि हूं, कांई रे जीहा हरि कहै।

    वा ऊवा मरण सराणे वैरी, वासै खुरे त्रोड़तो बहै॥

    निसदिन नाम जपै नारायण, झाले साँच पड़े झूठि।

    दोषी अंत आतम देखै, पान्ही चढ़हि जरा तो पूठि।

    प्राणिया नाम सुमिर पुरषोतम, अनि विषय परहरे आल।

    पग सों पग त्रोड़तौ पेखे, क्रम-क्रम जाल नाखतो काल।

    प्रिसण मरण हरि समय पालिस्यौ, मेल्हे मा चित सूध मना।

    धरि हरि चेत समदि धरणीधर, धरणीधर उवरिसि धना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : धन्नाभगत पैनोरमा
    • रचनाकार : धन्ना भगत
    • प्रकाशन : धुंवाकला

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