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चादर लेहु धुवाइ है

chadar lehu dhuwai hai

पलटू

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पलटू

चादर लेहु धुवाइ है

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    चादर लेहु धुवाइ है, मन मैल भया है।

    सतगुरु पूरा धोबी पाया, सतसंगति सौंदाई है॥

    तिरगुन दाग़ परयो चादर में, मलि-मलि दाग छुड़ाई है॥

    आँच दिहिन बैराग कि भाठी, सरवन मनन घमाई है॥

    निरखि-परखि कै चादर धोइनि, साबुन ज्ञान लगाई है॥

    पलटू दास ओढ़ि चलु चादर, बहुरि भवजल आई है॥

    हे साधक! मन रूपी चादर मैली है। इसे धुला लो। पूर्ण सद्गुरु धोबी है। उसकी शरण में जाओ। उनका सत्संग सौंदन है। मन रूपी चादर में सत, रज तथा तम गुण के कर्मों के दाग पड़े हैं, उन्हें रगड़-रगड़ कर छुड़ा लो। वैराग्य की भट्ठी में आंच देकर चादर को गर्म कर लिया और ज्ञानचर्चा की श्रवण-मनन रूपी धूप में सुखा लिया। आत्मज्ञान का साबुन लगाकर मन रूपी चादर को निरख-परख कर धो लिया। पलटू साहेब कहते हैं कि ऐसी स्वच्छ मन रूपी चादर को ओढ़कर जीवन का आचरण करो, तो पुनः संसार-सागर में नहीं आना होगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पलटू साहेब की बानी (पृष्ठ 386)
    • संपादक : अभिलाषा दास
    • रचनाकार : पलटू
    • प्रकाशन : कबीर आश्रम, कबीर नगर, इलाहाबाद
    • संस्करण : 2012

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