दुलहिन अँगिया काहे न धोवाई

dulhin angiya kahe na dhowai

कबीर

कबीर

दुलहिन अँगिया काहे न धोवाई

कबीर

दुलहिन अँगिया काहे धोवाई।

बालपने की मैली अँगिया विषय-दाग़ परिजाई।

बिन धोये पिय रीझत ना हीं, सेज सें देत गिराई।

सुमिरन ध्यान कै साबुन करि ले सत्तनाम दरियाई।

दुबिधा के भेद खोल बहुरिया मन कै मैल धोवाई।

चेत करो तीनों पन बीते, अब तो गवन नगिचाई।

पालनहार द्वार हैं ठाढ़ै अब काहे पछिताई।

कहत कबीर सुनो री बहुरिया चित अंजन दे आई॥

हे दुल्हिन, तूने अपनी अँगिया क्यों नहीं धुलवाई। यह बचपन की मैली अँगिया है जिस पर विषय-वासना के धब्बे पड़े हुए हैं। इसे बिना धोए प्रियतम रीझते नहीं हैं और सेज से नीचे गिरा देते हैं। भगवान की याद को अपना साबुन बना ले और सत्त नाम को दरिया। दुल्हिन, दुविधा की गाँठें खोल दे और मन का मैल धो डाल। ज़रा विचार तो कर, आयु के तीन भाग बीत चुके हैं और गौने का समय निकट गया है। तेरा पाने वाला दरवाज़े पर खड़ा है। अब क्यों उदास है। कबीर कहते हैं कि दुल्हिन, अपने मन की आँख में ज्ञान का काजल लगाकर जा।

स्रोत :
  • पुस्तक : कबीर बानी (पृष्ठ 100)
  • रचनाकार : अली सरदार जाफ़री
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन प्रा. लि.
  • संस्करण : 2010

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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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