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सबद संग्रह

गोरखनाथ के ‘सबदी’ को

बाद के संत कवियों ने ‘सबद’ बना लिया। संतों की आत्मानुभूति ‘सबद’ कहलाती है। सबद गेय होते हैं और राग-रागिनियों में बंधे हुए होते हैं। ‘सबद’ का प्रयोग आंतरिक अनुभव-आह्लाद के व्यक्तीकरण के लिए किया जाता है।

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सावण सरसी कामणी

गुरु अर्जुनदेव

गोपाल तेरा आरता

धन्ना भगत

प्रीतम प्रीति बसे दिल मेरो

दरिया (बिहार वाले)

जो धुनियाँ तौ भी मैं राम तुम्हारा

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

साधो नारि नैन सर बंका

दरिया (बिहार वाले)

पंडित सांच कहे जग मारे

दरिया (बिहार वाले)

साधो एक अचंभा दीठा

संत दरिया (मारवाड़ वाले)

साधो ऐसी खेती करई

संत दरिया (मारवाड़ वाले)