Font by Mehr Nastaliq Web

अब समझ रे, मन भाई

ab samajh re, man bhai

गवरी बाई

अन्य

अन्य

गवरी बाई

अब समझ रे, मन भाई

गवरी बाई

और अधिकगवरी बाई

    अब समझ रे, मन भाई, इस जग में झूठी सगाइ।

    संगु समधी, कलत्र, कुटंब, सब, स्वारथ को मल्यो आइ।

    आखर बिरीयां आयगी जब, रहेगी न्यारा चटकाइ॥

    झूठी रे काया, झूठी रे माया, झूठे ब्हेन और भाई।

    अंत काल कोइ संग साथी, हंस अकेला जाइ॥

    सोना, चांदी और हीरा, मोती तामें रह्यो ललचाइ।

    मुआ पीछे सब लुंट चलेगी, पिंजरा दीया जलाइ॥

    कहे 'गवरी' सतगुरु की किरपा, ले गोविंद कुं गाइ।

    सुकृत सौदा कर ले बंदे, आवागमन मिटाइ॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : गवरी बाई (भारतीय साहित्य के निर्माता)
    • संपादक : मथुरा प्रसाद अग्रवाल
    • रचनाकार : गवरी देवी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए