आपे सबदु आपे नीसानु

aape sabdu aape niisaanu

गुरु नानक

गुरु नानक

आपे सबदु आपे नीसानु

गुरु नानक

आपे सबदु आपे नीसानु। आपे सुरता आपे जानु॥

आपे करि करि वेखै ताणु। तू दाता नामु परवाणु॥

ऐसा नामु निरंजन देउ। हउ जाचिकु तू अलख अभेउ॥ रहाउ॥

माइआ मोहु धरकटी नारि। भूंडी कामणि कामणिआरि॥

राजु रूपु झूठा दिन चारि। नामु मिलै चानणु अंधिआरि॥

चखि छोडी सहसा नही कोइ। बापु दिसै बेजाति होई॥

एके कउ नाही भउ कोइ। करता करै करावै सोइ॥

सबदि मुए मनु मन ते मारिआ। ठाकि रहे मनु साचै धारिआ॥

अवरुन सूझै गुर कउ वारिआ। नानक नामि रते निसतारिआ॥

हे प्रभु, आप वह स्वयं ही शब्द रूप होकर उसका नाद बन जाते हो। आप ही ज्ञान रूप होकर उसकी सुरती-लय रूप धारण कर लेते हो। सृष्टि की बार-बार रचना करके स्वयं ही अपनी रचना को देखते हो। हे प्रभु, तुम ही सबके दाता रूप हो, निरंजन देव! तुम्हारा नाम ही ऐसा है। तुम अलख सत्ता हो और मैं तुम्हारे द्वार का याचक हूँ।

हे परमात्मा,मेरे समक्ष शीश- रहित नारी मोह-माया रूप में मुझे आसक्तियों के जाल में फँसाना चाहती है। वह भौंडी कामिनी माया सबको फँसाना चाहती है।वैभव-विलास प्रदान करने वाला राज्याधिकार क्षणिक है, मिथ्या है। इस माया रूप अँधेरे संसार में प्रभु नाम रूप प्रकाश मिल जाए, मानो जीवन को सार्थकता मिल जाए।

माया के मादकों को एक बार चखकर फिर सहसा छोड़ सकना मुश्किल है। पिता रूप परमात्मा के दिखाई देने पर भी माया बेजाति नहीं हो पाती। उस एक परमात्मा को संसार में कोई भय नहीं। क्योंकि, वहाँ दूसरा कोई है ही नहीं। वह अकेला परमात्मा ही इस दृश्यमान जगत में सबकुछ करता-कराता रहता है।

स्रोत :
  • पुस्तक : गुरु नानकदेव वाणी और विचार (पृष्ठ 259)
  • संपादक : रमेशचंद्र मिश्र
  • रचनाकार : गुरु नानक
  • प्रकाशन : संत साहित्य संस्थान
  • संस्करण : 2003

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