संस्मरण
कथेतर गद्य की प्रमुख विधाओं में से एक संस्मरण अतीत की घटनाओं के साहित्यिक शब्दांकन की विधा है। स्मृति, आत्मीय संबंध, वैयक्तिकता, प्रामाणिकता, चित्रात्मकता, कथात्मकता, स्वयं के प्रति तटस्थता आदि इसकी कुछ प्रमुख प्रवृत्तियाँ स्वीकार की जाती हैं। हिंदी में संस्मरण-साहित्य का आरंभ द्विवेदी युग से हुआ जो छायावाद युग तक पहुँचकर पर्याप्त प्रौढ़ हो चला और साहित्यिक विधा के रूप में इसकी प्रतिष्ठा बढ़ी।
रवीन्द्र कालिया
साठोत्तरी पीढ़ी के सुप्रसिद्ध गद्यकार। संपादक के रूप में उल्लेखनीय।
राजकमल चौधरी
अकविता दौर के चर्चित कवि-कथाकार। भाषा में गद्य के क्रोध और कविता की करुणा के लिए उल्लेखनीय।
राजेन्द्रसिंह बेदी
रामनरेश त्रिपाठी
छायावादी कवि और गद्यकार। ग्रामगीतों के संकलन के लिए स्मरणीय।
रामबक्ष जाट
आलोचक और शिक्षाविद्। प्रेमचंद-साहित्य के गंभीर अध्येता। संस्मारणात्मक कृति 'मेरी चिताणी' के लिए चर्चित।