सरदार पूर्ण सिंह के उद्धरण

हमारे यहाँ के मज़दूर, चित्रकार तथा लकड़ी और पत्थर पर काम करने वाले भूखों मरते हैं तब हमारे मंदिरों की मूर्तियाँ कैसे सुंदर हो सकती हैं?
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अन्न पैदा करने में किसान भी ब्रह्मा के समान है। खेती उसके ईश्वरीय प्रेम का केंद्र है। उसका सारा जीवन पत्ते-पत्ते में, फूल-फूल में बिखर रहा है।
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सत्वगुण के समुद्र में जिनका अंतःकरण निमग्न हो गया वही महात्मा साधु और वीर हैं।
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जो आँख हर आँख में अपने ही प्यारे को देखती है, वह कला के पैमानों के कारागार में कैसे बंद हो सकती है?
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जब हम मनुष्य हो जाएँगे तब तो तलवार भी, ढाल भी, जप भी, तप भी, ब्रह्मचर्य भी, वैराग्य भी सबके सब हमारे हाथ के कंकणों की तरह शोभायभान होंगे, और गुणकारक होंगे।
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संबंधित विषय : मनुष्य
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