कन्हैयालाल सहल के निबंध
भारतीय संतों की साधना
आज कहा जाता है कि विज्ञान गतिशील है और धर्म स्थितिशील है, किंतु कबीर का धर्म स्थितिशील नहीं था। वे पुरोगामी थे। भगवान् बुद्ध आदि ने संस्कृत को छोड़कर लोक-प्रचलित भाषा में उपदेश दिया था। कबीर ने भी इस तत्त्व को भली-भाँति समझा था। “संस्कृत कूप जल कबीरा,
सच्चा निबंध किसे कहें?
भोजन के बाद सोफा पर बैठकर सिगरेट के कश खींचते हुए जैसे कोई ज़िंदादिल मज़ेदार अनुभवी व्यक्ति अपने मनोरंजक अनुभव सुना रहा हो—कुछ-कुछ इसी तरह का है सच्चे निबंध का वातावरण। इसीलिए निबंध को ‘किसी मज़ेदार और बहुश्रुत व्यक्ति के भोजनोत्तर एकांत संभाषण’ की संज्ञा
काव्य की आठ माताएँ
राजशेखर ने अपनी काव्य-मीमांसा में काव्य की आठ माताओं का उल्लेख किया है जैसा कि निम्नलिखित पद्य से स्पष्ट है— स्वास्थ्यं प्रतिभाऽभ्यासो, भक्तिर्विद्वत्कथा बहुश्रुतता। स्मृतिदार्ढ्यम्निर्वेदश्च, मातरोऽष्टौ कवित्वस्य॥ अर्थात् स्वास्थ्य, प्रतिभा,
हास्य-विज्ञान
नाभि, कांख, पसली-प्रदेश अथवा पैर का तलवा जब गुदगुदाया जाता है तो हँसी क्यों आने लगती है? क्या इसका कारण यह नहीं है कि शरीर के ये अंग सामान्यत: छुए जाने के आदी नही हैं? अकस्मात् ही जब ये छू दिए जाते हैं तो हँसी आ जाती है। हास्य के और भी अनेक कारण चाहे
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere