कालिंदीचरण पाणिग्राही की संपूर्ण रचनाएँ
कविता 2
उद्धरण 4

हे धरित्री, तुमने असंख्य शोणित-दाग़ धारण किए हैं तुम्हारा अंगराग बार-बार मलिन हुआ है। तुम्हारे हृदय को तृप्तिहीन रक्ततृषा और क्षमाहीन प्रतिहिंसा ने दग्ध किया है और तुम चिरकाल से क्षुब्ध रही हो।
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अतीत का क्षीण अवशेष ही नवीन का मेरुदंड है। ओ सफ़ेद केशों वाले पुरातन! तुम्हीं भविष्य के शासक हो।
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