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कालिंदीचरण पाणिग्राही

1901 - 1991 | विश्वनाथपुर, ओड़िशा

समादृत ओड़िया कवि-उपन्यासकार-नाटककार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

समादृत ओड़िया कवि-उपन्यासकार-नाटककार। साहित्य अकादेमी पुरस्कार से सम्मानित।

कालिंदीचरण पाणिग्राही की संपूर्ण रचनाएँ

कविता 2

 

उद्धरण 4

मुझे स्वर्ग अच्छा नहीं लगता। यह मृत्युलोक ही मेरे लिए स्नेह-सदन है, सुख की मणि है।

हे धरित्री, तुमने असंख्य शोणित-दाग़ धारण किए हैं तुम्हारा अंगराग बार-बार मलिन हुआ है। तुम्हारे हृदय को तृप्तिहीन रक्ततृषा और क्षमाहीन प्रतिहिंसा ने दग्ध किया है और तुम चिरकाल से क्षुब्ध रही हो।

नया फिर क्षण मात्र में ही पुराना हो जाता है।

अतीत का क्षीण अवशेष ही नवीन का मेरुदंड है। सफ़ेद केशों वाले पुरातन! तुम्हीं भविष्य के शासक हो।

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