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जमाल

1545 - 1605

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। शब्द-क्रीड़ा में निपुण। भावों में मार्मिक व्यंजना और सहृदयता। दृष्टकूट दोहों के लिए स्मरणीय।

भक्तिकाल और रीतिकाल के संधि कवि। शब्द-क्रीड़ा में निपुण। भावों में मार्मिक व्यंजना और सहृदयता। दृष्टकूट दोहों के लिए स्मरणीय।

जमाल के उद्धरण

प्रिय के प्रसन्न होने पर मैं उमंगभरी हो जाती हूँ और प्रिय के उमंग भरे होने पर मैं उनका एक अंग बन जाती हूँ प्रिय मेरे हैं और मैं उनकी हूँ, इस प्रकार हम दोनों अब एक हो गए हैं।

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