ज्ञानरंजन की कहानियाँ
पिता
उसने अपने बिस्तरे का अंदाज़ लेने के लिए मात्र आध पल को बिजली जलाई। बिस्तरे फ़र्श पर बिछे हुए थे। उसकी स्त्री ने सोते-सोते ही बड़बड़ाया, ‘आ गए’ और बच्चे की तरफ़ करवट लेकर चुप हो गई। लेट जाने पर उसे एक बड़ी डकार आती मालूम पड़ी, लेकिन उसने डकार ली नहीं। उसे
फ़ेन्स के इधर और उधर
हमारे पड़ोस में अब मुखर्जी नहीं रहता। उसका तबादला हो गया हैं। अब जो नए आए हैं, हमसे कोई वास्ता नहीं रखते। वे लोग पंजाबी लगते हैं या शायद पंजाबी न भी हों। कुछ समझ नहीं आता उनके बारे में। जब से वे आए हैं उनके बारे में जानने की अजीब झुंझलाहट हो गई हैं।
घंटा
‘पेट्रोला’ काफ़ी अंदर धँसकर था। दर्ज़ी की दुकान, साइकिल स्टैंड और मोटर ठहराने के स्थान को फाँदकर वहाँ पहुँचा जाता था। वह काफ़ी अज्ञात जगह थी। उसे केवल पुलिस अच्छी तरह जानती थी। हम लोग इसी बिल्कुल टुकड़िया जगह में बैठने लगे थे। यहाँ जितनी शांति और छूट
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere