...लिखते समय जितना भी अकेलापन हो, वह काफ़ी अकेलापन नहीं है, कितनी ही ख़ामोशी हो वह पर्याप्त ख़ामोशी नहीं है, कितनी ही रात हो वह काफ़ी रात नहीं है।
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आप किसी के प्रभाव में कुछ दिन तक तो रह सकते हैं, लेकिन आजीवन नहीं रह सकते।
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कभी ऐसा दिन भी होता है और ऐसी ऋतु जब आकाश पर सुबह तक चाँद एक वाटरमार्क की तरह उपस्थित रहता है और दूसरी तरफ़ सूर्योदय भी हो रहा होता है। मेरे जीवन का प्रारंभ कुछ ऐसा ही था।