अब्दुल अहद 'आज़ाद' के उद्धरण

हे देशवासी, तू अपने आप को पहचान। अपने हृदय व मस्तिष्क से काम लेकर तू परतंत्रता का दाग़ मिटा दे। तू क्रांति ला, क्रांति ला। तेरी मेहनत की कमाई से दूसरे धनवान बन रहे हैं। तू किन के सामने भटकता है और किन के भय से डरता है। अपने ख़ून-पसीने से तू जिनके लिए नींव बना रहा है, वही लोग तुझे हेय समझते हैं। हे पौरुषहीन! क्रांति ला, क्रांति ला।

प्रेम ने बड़े-बड़े तपस्वियों और विद्वानों की मति फेर दी है। यह कोमल व खिले यौवन को क्षण भर में मिटाकर राख कर देता है।
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